सत री संगत दीजो ओ गुरूजी माने
SAT RI SANGAT DIJO O GURUJI
(भजन के बोल)
दोहा:-
“आग लगी आकाश में,
झुर झुर पड़े अंगार,
संत नहीं होता जुगत में,
तो जल जातो संसार”
गुरू भजन
सत री संगत दीजो ओ गुरूजी माने,
सत री संगत माने दीजो रे,
बार बार मारी आई विनती,
कर कृपा कर दीजो रे ||
सत री संगत मे ब्रह्मा जावे ,
नारद मुनी सब मिल कर रे,
जो सुख है इन सत संगत में ,
वो सुख स्वर्ग में नहीं रे |
सत री संगत दीजो ओ…||
माता भी साधु पिता भी साधु,
साधो रे संग डोलू रे,
भोजन भाव संतो ने चारू,
संतो रे मुख बोलूं रे |
सत री संगत दीजो ओ…||
आनन्द भाव सदा ही मन भावे,
सदा आनंद मे रहेवु रे,
ज्यों री संगत देजो ओ गुरूजी मारा,
नाम पलक नहीं भूलूं रे |
सत री संगत दीजो ओ…||
निर्मल नेण वेेण ज्यों रा निर्मल,
निर्मल ज्यों रा अंगड़ा रे,
कहे सुर प्रभु भल भल कहीजो,
एडा साधु रा संगड़ा रे |
सत री संगत दीजो ओ…||
“बोलो सतगुरु देव जी की जय हो”
SAT RI SANGAT DIJO GURUJI = kantilal purohit
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